सम्प्राप्ति रोग का ज्ञान निदान, पूर्वरूप आदि से सामान्य रूप से होता है। रोग का सम्यक् ज्ञान सम्प्राप्ति ज्ञान के बिना संभव नहीं क्योंकि दोष दूष्य की विकृत स्थिति को सम्प्राप्ति द्वारा ही जाना जा सकता है। परिभाषा यथादुष्टेन दोषेण यथाचानुविसर्पता। निवृत्तिरामयस्यासौ संप्राप्तिर्जातिरागतिः। (अ. ह. नि. 1/8) दोष जिस प्रकार (प्राकृत आदि विविध) निदानों से दूषित होकर और जिस प्रकार (उर्ध्व, अधो, त्रियक गतियों के द्वारा शरीर में) विसर्पण करते हुये धातु आदि को दूषितकर रोग को उत्पन्न करता है उसे सम्प्राप्ति कहते हैं। या रोगों की सम्यक् प्राप्ति ही सम्प्राप्ति है।- चक्रपाणिटीका के अनुसार व्याधिजनकदोषव्यापारविशेषयुक्तं व्याधिजन्मेह संप्राप्तिशब्देन वाच्यम्। अतएवपर्याये 'आगतिः' इति उक्तम्। (च. नि. 1/11 पर चक्रपाणि टीका) व्याधिजनक दोषों के विविध व्यापारों एवम् परिणामों से युक्त व्याधिजन्म ही सम्प्राप्त...
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