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 एक सफल अयुर्वेद चिकित्सक के लक्षण-
जब मै B.A.M.S.  की पढ़ाई कर रहा था, तो उस समय मै  कई  चीजों को लेकर प्रायः भ्रमित रहता था। बीएएमएस का प्रथम सत्र अत्यन्त बोझिल एवं नान क्लीनिकल होने के कारण विज्ञान के विद्यार्थियों के लिये बहुत भारी गुजरता है। इससे निराश होकर बहुत से विद्यार्थी आयुर्वेद चिकित्सक बनने का विचार त्याग कर अन्य क्षेत्रों में ही
कैरियर बनाने के लिये जा चुके होते हैं। त्रुटिपूर्ण व्यवस्था एवं अपने बोझिल पाठ्यक्रम के कारण आयुर्वेद प्रतिवर्ष अनेक प्रतिभायें खोता जा रहा है। एक ओर एलोपैथ की सीमायें और दुष्प्रभावों से पीड़ित दुनिया भर का रोगी आयुर्वेद की ओर आशा भरी निगाहों से देख रहा है, वहीं दूसरी ओर ही आज का युवा और आयुर्वेद शिक्षित चिकित्सक आयुर्वेद से दूर भाग रहा है।  मेरा मनना है कि मात्र 100 लोग भी प्रेरित होकर आयुर्वेद चिकित्सा के प्रति गम्भीर हो सके तो विश्वास करें, कि ये 100 चिकित्सक ही आयुर्वेद को भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में एक नई दिशा दे सकते हैं। ये नियम इतने सरल और सहज हैं कि इनका पालन करना कोई कठिन कार्य नहीं है और इनका पालन करने से आप एक सफल आयुर्वेद चिकित्सक बन सकते हैं। जरूरत है तो सिर्फ आपके, उत्साह एवं साहस की।
नियम-1. स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान का अकूत भण्डार है आयुर्वेद-
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों में स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान का अकूत भण्डार छिपा हुआ है। आयुर्वेद चिकित्सक बनने का निश्चय करने के बाद चिकित्सा से सम्बन्धित इस ज्ञान को आज से ही एकत्र करना प्रारम्भ कर दें। जिस प्रकार,  बूंद-बूंद करके जल एकत्र करने से एक दिन घड़ा भर जाता है। उसी तरह से संचित ज्ञान में एक दिन ज्ञान भी विशाल भण्डार का रूप ले लेता है। ज्ञान वही लें जो आपके उपयोग में आये। अनुपयोगी ज्ञान में समय नष्ट न करें आपको अपने व्यावसायिक जीवन में बहुत संघर्ष करना है, वहाँ उपयोगी ज्ञान ही काम आयेगा।
इस सम्बन्ध में मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह है कि श्लोक रटना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना उनका भावार्थ एवं चिकित्सीय उपयोग समझना है। मैंने अपने कई साथियों एवं वरिष्ठों को देखा है कि उनकों  कई हजारों श्लोक जबानी याद हैं, मगर उनको यह ज्ञात नहीं कि इनका कब, कहाँ और कैसे उपयोग करना है। फिर भी, श्लोक का अपना के महत्व होता है। इसका रोगी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्यान रखें! श्लोक का भावार्थ और उपयोग पता होने पर श्लोक स्वतः याद हो जाते हैं।
नियम- 2. भरोसेमन्द और प्रभावी व्यक्तित्व का निर्माण करें-
चिकित्सा के अतिरिक्त शायद ही कोई अन्य ऐसा व्यवसाय होगा जिसमें प्रभावशाली व्यक्तित्व का अत्यधिक महत्व होता है। इसलिये, एक सफल चिकित्सक बनने के लिये अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली एवं एक विश्वसनीय बनाने का प्रयास करें। रोगी को अनावश्यक और झूठे आश्वासन बिल्कुल न दें। हमेशा याद रखें, "एक संतुष्ट रोगी भले ही अन्य रोगियों को आपके पास न भेजे लेकिन एक असन्तुष्ट रोगी कई अन्य रोगियों को आपके पास आने से रोक अवश्य सकता है।" अपने पास रोगी को सांत्वना देने वाले वाक्यों का भण्डारण आज से आरम्भ करें। एक सफल चिकित्सक के पास रोगी को सांत्वना देने के लिये रोग एवं उपचार से सम्बन्धित प्रभावशाली वाक्यों का भण्डार होना अनिवार्य होता है।
नियम-3. स्वभाव में विन्रमता रखें-
एक सफल चिकित्सक के स्वभाव में विन्रमता होना उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण होता है। कोई भी रोगी किसी भी चिकित्सक से दो कारणों से विमुख होता है- जब वह उसका रोग न ठीक कर पा रहा हो या उसका स्वभाव चिड़चिड़ा या अत्यन्त रूखा हो। अतः एक सफल चिकित्सक के लिये अपना स्वभाव विन्रम बनाये रखना अत्यन्त आवश्यक होता है। यदि चिकित्सक का स्वभाव विन्रम है तो रोगी  चिकित्सक की अन्य कई कमियों की अनदेखी कर देता है।
नियम-4. प्रचार व पहचान बनायें-
BAMS 1st yr. में प्रवेश लेते ही अपने सभी रिश्तेदारों, मित्रों  एवं अपने परिचितों को यह बताना आरम्भ कर दें कि आप आयुर्वेद चिकित्सक बनने वाले हैं। वैसे, वास्तविकता तो यह है कि आयुर्वेद का विद्यार्थी हीनभावना से ग्रस्त होने के कारण स्वयं को आयुर्वेदिक का चिकित्सक बताने से बचते हैं। इसका एक मात्र कारण इसको वैकल्पिक चिकित्सा माना जाना है। इसलिये, जब आयुर्वेद में प्रवेश लिया है तो आयुर्वेद पर गर्व करें, उसके प्रशंसक बनें, आलोचकों को यथोचित उत्तर दें। जब आप स्वयं आयुर्वेद पर गर्व करेंगे तो दूसरे भी अपनी समस्याओं का आयुर्वेद के द्वारा और आपसे ही करायेंगे। उनमें से जो रोगी ठीक हो जायेगा, वह स्वतः आपका प्रचारक बन जायेगा। ऐसा करने पर जब आप BAMS करके निकलेंगे तो समाज में एक  आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में स्थापित हो चुके होंगे। चिकित्सक के प्रचार-प्रसार में मुख-प्रचार के जैसा कोई अन्य साधन नहीं है। 
नियम-5. सफल चिकित्सकों का अनुसरण करें-
जब आप बीएएमएस करके चिकित्सा कार्य करना आरम्भ करेंगे तो! आपको हतोत्साहित करने वाले सैकड़ों असफल आयुर्वेद चिकित्सक मिलेंगे। वे आपको बतायेंगे कि आयुर्वेद में कुछ नहीं रखा है। रोगी तो allopath चिकित्सा ही चाहता है। इसलिए साइड में एलोपैथ चिकित्सा भी करते रहो। ऐसे लोगों को अपना आदर्श कभी न बनायें। उन आयुर्वेद चिकित्सकों से हमेशा मिलते रहें जो आयुर्वेद से रोगियों की सफल चिकित्सा करते हैं।  वे अपना ज्ञान तो आपको कभी नहीं देंगे, लेकिन उनकी रीति-नीति आपको बहुत कुछ सिखा देगी।
नियम-6. रेडीमेड नुस्खों की उम्मीद न रखें-
बहुत बार सफ़ल अयुर्वेद चिकित्सक से लोग पुछते है कि आप कौन कौन सा दवा देते है? कि बिमारी ठीक हो जाती है।  लगभग हर विद्यार्थी यही चाहता है कि उसे पका-पकाया माल मिल जाये, कोई वैद्य, हकीम या सन्यासी उनके घर पर आकर उसे नुस्खे बताकर चला जाये और वह उन्हें नोट करके चिकित्सा करने लगे। इससे सफलता नहीं मिलती। सफलता के लिये श्रम आवश्यक होता है। हमेशा अपने योग स्वयं बनाने का प्रयास करें।
नियम-7. डायरी बनायें-
अपने पास हमेशा रफ और फेयर दो तरह की डायरी रखें। जब किसी रोगी को कोई दवा या चिकित्सा दें तो उसे रफ, डायरी में लिख लें। फिर उसके परिणाम देखें। यदि सकारात्मक परिणाम दिखें तो उसे फेयर डायरी में लिखें। फेयर डायरी को रोगानुसार खण्डों में विभाजित कर लें। आप जब भी कोई आयुर्वेद का ग्रन्थ पढ़ें और उसमें कोई योग देखें तो उसे रोग खण्ड में सन्दर्भ सहित नोट कर लें। यदि कोई रोगी बताता है कि उसे इस दवाई से इस रोग में लाभ हुआ था तो उसे भी रोगी के नाम व अनुभव के साथ सम्बन्धित खण्ड में लिख लें। इसी प्रकार,यदि आपने किसी पत्रिका या पुस्तक में किसी योग के बारे में पढ़ा है तो उसे रफ डायरी में लिखें तथा परीक्षण करने के बाद लाभदायक होने पर फेयर डायरी में लिखें। डायरी में अपने अनुभवों के साथ-साथ गलतियों को भी लिखें। गलतियां दोहराने से बचें। यह अभ्यास शीघ्र ही आपको एक सफल आयुर्वेद चिकित्सक बना देगा।
नियम-8. चिकित्सा सम्बन्धी ग्रन्थों का संग्रह करें-
मैंने अपने स्कूल के दिनों में कहीं पढ़ा था 'कोट पुराना पहनो, किताबें नई खरीदो'। मैंने हमेशा इसका अनुसरण किया है। मैं आरम्भ से ही आयुर्वेद एवं अन्य चिकित्सीय ग्रन्थ खरीदता रहता हूँ आज मेरे पास आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी, एलोपैथी आदि के कई महत्वपूर्ण ग्रन्थों का संग्रह है जो आज मेरे सच्चे साथी हैं। कुछ विद्यार्थी
सोचते हैं कि ये किताबें इतनी मंहगी आती हैं, लेकिन विश्वास करें इनमें यदि  किसी में भी एक भी नुस्खा मिल गया तो आपको लाखों रुपये दिला देगा।
नियम-9. जड़ी बूटियों का संग्रह करें-
आपके लिए उपयुक्त होगा कि आप बीएएमएस पूरा करने के पूर्व ही कम से कम 500 जड़ी-बूटियों का संग्रह अवश्य कर लें। इसके लिये आप प्लास्टिक के डिब्बों में वर्णानुक्रम या सांस्थानिक कर्म के अनुसार जड़ी-बूटियों का भण्डारण करें। आप जब भी किसी औषधि के सम्पर्क में आयें तो उसे डिब्बे में रखकर उसके नाम का लेबल लगा दें। इसके अतिरिक्त, आप जड़ी-बूटी विक्रेता या गांवों में जड़ी-बूटी एकत्र करने वालों से भी 50-50 ग्राम या 100-100 ग्राम सभी औषधियां खरीद कर रख लें। अब इन औषधियों के बारे में जितना ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं, करें। आपके पास जब भी कोई रोगी आये तो उसे इन औषधियों से योग बनाकर दे दें। विश्वास कीजिये, यदि आप इतना श्रम कर लेंगे तो जब आप बीएएमएस पूरा करके निकलेंगे तो आपमें अपनी चिकित्सा के प्रति उतना ही आत्मविश्वास होगा जितना 5-10 वर्षों के अनुभवी चिकित्सक में होता है। 
नियम-10. भस्मों-आसवों और अरिष्ट का भी संग्रह करें-
यदि आपकी आर्थिक स्थिति अनुमति देती है तो आप यथा सामार्थ्य भस्मों, आसवों और अरिष्टों का भी संग्रह करें क्योंकि 5 वर्षों के इनके मूल्यों में तो वृद्धि हो ही चुकी होगी, साथ ही इनकी गुणवत्ता में भी पर्याप्त वृद्धि होगी। यह बढ़ा हुआ मूल्य और गुणवत्ता आपको निवेश किये गये धन का कई गुना धन, यश और सम्मान दिला देगा।
नियम-11. औषधीय पौधे लगायें-
यदि आपके पास थोड़ी सी कृषि भूमि है तो उसमें थोड़ी-थोड़ी मात्रा में औषधीय पौधे अवश्य लगायें। यदि भूमि न हो तो किसी सुनसान या बंजर भूमि पर औषधीय पौधों के बीज डाल आयें। समय आने पर, बीज पौधों का रूप लेकर आपके चिकित्सा कार्य में बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे।
नियम-12. चिकित्सा हेतु रोगों का चयन करें-
आप आरम्भ से ही आयुर्वेद का जनरल फिजीशियन बनने की कोशिश करने की गलती कभी न करें। आप शुरूआत में 5 से 10 रोगों पर ही ध्यान केन्द्रित करें। वैसे तो आजीविका चलाने व प्रसिद्धि पाने के लिये एक ही रोग पर्याप्त होता है, फिर भी, आप कम से कम 5 रोगों में अवश्य दक्षता प्राप्त करें। इन चयनित रोगों के सम्बन्ध में सभी
आयुर्वेद ग्रन्थों, एलोपैथी एवं अन्य पद्धतियों के ग्रन्थ पढ़कर उन पर पाने का प्रयास करें। जितना अधिक प्रयास करेंगे, उतनी ही दक्षता अधिक सफलता मिलेगी।
नियम-13.असाध्य रोगों का चिकित्सक बनने का प्रयास न करें-
कुछ  चिकित्सक या वैद्य अपने चिकित्सालय के बाहर बोर्ड पर लिखवाते हैं कि “यहाँ असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है।" कितनी हास्यास्पद बात है कि एक ओर रोग को स्वयं ही असाध्य बता रहे हैं और वहीं दूसरी ओर उसे अच्छा करने की बात भी कर रहे हैं। ऐसा करने का प्रयास कभी न करें। हो सकता है कि ऐलोपैथी के लिये जो
रोग असाध्य हों, वे आयुर्वेद के लिये साध्य हों। यदि आप ऐसे रोगों का इलाज करते हैं, तो इससे आपको यश और धन दोनों की प्राप्ति होगी।
नियम-14. अंग्रेजी भाषा सीखें-
संस्कृत का ज्ञान निश्चित रूप से आयुर्वेद समझने और अच्छे अंक पाने के लिये आवश्यक होता है, लेकिन प्रैक्टिस में सफलता पाने के लिये यह इतना ज्ञान महत्व नहीं रखता जितना कि अंग्रेजी का ज्ञान रखता है। अंग्रेजी सीखकर आप पूरे विश्व को अपना कार्य क्षेत्र बना सकते हैं। इससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और आपके रोगियों में कई देशों के रोगी भी शामिल हो सकते हैं। social media और internet के युग में विश्व सिमट कर बहुत छोटा रह गया है। अब चिकित्सा करने के लिए आपके सामने अपार संसार है।
                             तो आइये! और सफल आयुर्वेद चिकित्सक बनने की दिशा में दृढ़संकल्पित होकर पहला कदम बढ़ायें। विश्वास करें, ये केवल नियम ही नहीं, बल्कि मंत्र भी हैं। इन मंत्रों को अपने जीवन में अपना कर आप निश्चित रूप से न केवल एक सफल आयुर्वेद चिकित्सक बनेंगे, बल्कि सफलता के वे मानदण्ड स्थापित करेंगे जो आने वाली पीढ़यों के चुनौती और प्रेरणास्रोत होंगे। यही चिकित्सक का धर्म है, कर्म है और मानवता की सच्ची सेवा है। हाँ, एक बात और, चिन्तन आयुर्वेद का करें, धन का नहीं। आयुर्वेद के चिन्तन से धन की प्राप्ति
सम्भव है, लेकिन धन से आयुर्वेद की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती।*
संपादकीय़- डा. आषीश कुमार सिंह BAMS, MD.(KAYACHIKITSA)

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